Learn Astrology(ज्योतिष सीखिए )-१
ज्योतिष शास्त्र में कुल १२ राशि और २७ नक्षत्र है इन नक्षत्रों से ही राशिया बनी हुयी है १२ राशियां और उनके स्वामी ग्रह इस प्रकार है
१.मेष -मंगल -
२.वृष -शुक्र
३ मिथुन-बुध
४.कर्क -चंद्र
५.सिंह -सूर्य
६ कन्या-बुध
७ तुला -शुक्र
८ वृश्चिक -मंगल
९. धनु -गुरु(बृहस्पति )
१० मकर - शनि
११ कुम्भ -शनि
१२ मीन -गुरु
नक्षत्र और उनके स्वामी ग्रह इस प्रकार हैं
अश्वनी -केतु ,भरणी -शुक्र ,कृतिका -सूर्य ,रोहिणि -चंद्र ,मृगशिरा -मंगल ,आर्द्रा -राहु ,पुनर्वसु -गुरु ,पुष्य -शनि ,आश्लेषा -बुध ,मघा -केतु ,पु.फाल्गुनी -शुक्र ,उ .फाल्गुनी -सूर्य ,हस्त -चंद्र ,चित्रा -मंगल ,स्वाति -राहु ,विशाखा -गुरु ,अनुराधा -शनि ,ज्येष्ठा -बुध ,मूल -केतु ,पूर्वाषाढ़ा -सूर्य ,उत्तराषाढ़ा -सूर्य ,श्रवण -चंद्र ,घनिष्ठा -मंगल ,शतभिषा -राहु ,पूर्वाभाद्रपद -गुरु ,उ.भाद्रपद-शनि ,रेवती -बुध
कुंडली परिचय -मानव के जीवन का विश्लेषण करने के लिए कुंडली को १२ भागो में विभक्त जाता है इन भागो को भाव कहते है
जन्म लग्न की पहचान
पहले भाव में जो भी राशि होती है वह जन्म लग्न कहलाती है जैसे पहले भाव में १ लिखा है तो मेष लग्न होगा अगर २ लिखा है तो वृष लग्न होगा ३ लिखा है तो मिथुन लग्न होगा ऐसे ही अगर १२ लिखा होगा तो मीन लग्न होगा
जन्म राशि की पहचान -जन्म कुंडली में चंद्र जिस राशि में होगा वह जन्म राशि होगी जैसे चंद्र ६ नंबर वाली राशि में होगा तो जन्म राशि कन्या होगी
उदाहरण -कुंडली
ऊपर दी हुयी कुंडली में पहले भाव में ४ नंबर लिखा है तो जन्म लग्न हुआ -कर्क
चंद्र ६ नंबर की राशि में हुआ इसलिए जन्म राशि हुयी कन्या ,
ऊपर दी हुयी कुंडली में पहले भाव में सूर्य, मंगल है और कर्क राशि है
दूसरे भाव में बुध राहु है और राशि है सिंह और इसी तरह हम पूरी कुंडली में यह देख सकते है की किस भाव में कौन सा ग्रह है और कोण सी राशि है
कुंडली के १२ भावो का विवरण :
पहला भाव :पहले भाव को जन्म भाव भी कहते है इस भाव से व्यक्ति के जन्म के बारे में पता चलता है जैसे उसका रंग ,रूप ,कद,काठी , उसका व्यक्तित्व
दूसरा भाव -,दूसरे भाव को धन भाव या कुटुम्भ भाव भी कहते है इस भाव से परिवार ,धन,वाणी ,खाद्य पदार्थ के बारे में विचार जाता है
तीसरा भाव :इस भाव से पराक्रम,परिश्रम ,छोटे भाई बहन आदि के बारे में विचार किया जाता है
चौथा भाव :माता भूमि घर सम्पति सुख आदि का विचार किया जाता है
पांचवा भाव :संतान ,शिक्षा ,प्रेम प्रसंग ,पिछला जन्म ,यश आदि के बारेमे में विचार किया जाता है
छठा भाव :शत्रु ,बीमारी ,रोग ,अपयश आदि के बारे में विचार किया जाता है
सातवा भाव : जीवन साथी ,साझेदारी ,जीवन साथी से सम्बन्ध ,आदि के बारे में विचार किया जाता है
आठवां भाव : आयु ,रुकावटे ,दुर्घटना आदि के बारे में विचार किया जाता है
नौवा भाव :भाग्य ,धर्म ,चरित्र ,पिता ,उच्च शिक्षा आदि के बारे में विचार किया जाता है
दसवा भाव:कर्म ,पद ,प्रतिष्ठा ,व्यवसाय आदि के बारे में विचार किया जाता है
ग्यारवाँ भाव :लाभ ,मित्र ,बड़े भाई बहन ,खुशहाली ,इच्छापूर्ति आदि का विचार किया जाता है
तीसरा भाव :इस भाव से पराक्रम,परिश्रम ,छोटे भाई बहन आदि के बारे में विचार किया जाता है
चौथा भाव :माता भूमि घर सम्पति सुख आदि का विचार किया जाता है
पांचवा भाव :संतान ,शिक्षा ,प्रेम प्रसंग ,पिछला जन्म ,यश आदि के बारेमे में विचार किया जाता है
छठा भाव :शत्रु ,बीमारी ,रोग ,अपयश आदि के बारे में विचार किया जाता है
सातवा भाव : जीवन साथी ,साझेदारी ,जीवन साथी से सम्बन्ध ,आदि के बारे में विचार किया जाता है
आठवां भाव : आयु ,रुकावटे ,दुर्घटना आदि के बारे में विचार किया जाता है
नौवा भाव :भाग्य ,धर्म ,चरित्र ,पिता ,उच्च शिक्षा आदि के बारे में विचार किया जाता है
दसवा भाव:कर्म ,पद ,प्रतिष्ठा ,व्यवसाय आदि के बारे में विचार किया जाता है
ग्यारवाँ भाव :लाभ ,मित्र ,बड़े भाई बहन ,खुशहाली ,इच्छापूर्ति आदि का विचार किया जाता है
बारवां भाव:व्यय ,शैय्या सुख ,विदेश में बसना आदि के बारे में विचार किया जाता है
भाव का स्वामी : जिस भाव में जो राशि होती है उस राशि के स्वामी को ही उस भाव का स्वामी कहा जाता है
मारकेश : दूसरे और सातवे भाव के स्वामी को मारकेश कहा जाता है
१,४,७ ,७ भावो को केंद्र भाव कहा जाता है
५,९ भावो को तिकोण कहते है
६,८,१२ भावो को त्रिक भाव कहा जाता है
३,६,१०,११ को उपचय कहा जाता है
२,५,८,११ को पणफर कहा जाता है
३,६,९,१२ को अपोक्लिम कहते है
भाव का स्वामी : जिस भाव में जो राशि होती है उस राशि के स्वामी को ही उस भाव का स्वामी कहा जाता है
मारकेश : दूसरे और सातवे भाव के स्वामी को मारकेश कहा जाता है
१,४,७ ,७ भावो को केंद्र भाव कहा जाता है
५,९ भावो को तिकोण कहते है
६,८,१२ भावो को त्रिक भाव कहा जाता है
३,६,१०,११ को उपचय कहा जाता है
२,५,८,११ को पणफर कहा जाता है
३,६,९,१२ को अपोक्लिम कहते है
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