आज हम इस लेख में गण्ड मूल नक्षत्र के बारे में बताने जा रहे है गण्ड मूल नक्षत्र के बारे में तरह तरह की भ्रांतिया फैली हुयी है मेरे इस लेख का उद्देश्य उन भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश करना है
ज्योतिष में १२ राशि और २७ नक्षत्र है और प्रत्येक नक्षत्र के ४ चरण होते है ज्योतिष में एक राशि का विस्तार ३० डिग्री है जबकि प्रत्येक नक्षत्र का विस्तार १३ डिग्री २० अंश होता है जब कोई राशि और नक्षत्र एक स्थान पर समाप्त होते है तब उस स्थिति को गण्ड नक्षत्र और जब इसी स्थान से नया नक्षत्र शुरू होता है तब इस स्थिति को मूल कहते है २७ नक्षत्रो में ६ नक्षत्र ही गण्ड मूल नक्षत्र कहलाये जाते है जिनमे ३ गण्ड और ३ मूल नक्षत्र कहे जाते है वो इस प्रकार है
१.अश्वनी (केतु स्वामी ) इस नक्षत्र के पहले चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
२.अश्लेषा (बुध) इस नक्षत्र के चौथा चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
३ मघा ,(केतु )इस नक्षत्र के पहला चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
४ मूल ,(केतु)इस नक्षत्र के पहला चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
५. ज्येष्ठा ,(बुध)इस नक्षत्र के चौथा चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
६ रेवती (बुध)इस नक्षत्र के चौथा चरण में जन्मे बच्चे के नक्षत्र का पूजन जरूरी होता है
गण्ड मूल नक्षत्र के प्रभावों के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है ज्योतिष में परम्परागत ज्योतिषचार्यों ने अपने अनुभवों के अनुसार इन नक्षत्रो के प्रभावों का विवेचन किया है गण्ड मूल नक्षत्र को शांत करने पूजा विधि है यदि कोई पूजा नहीं करवा पाता है तो उसे कम से काम अपने नक्षत्र के स्वामी ग्रह की पूजा अवश्य करनी चाहिए पूजा करवाने के लिए विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए